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Ballia : बोले लोग, सहतवार में हुआ था वीर कुंवर सिंह का जन्म

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रोशन जायसवाल/आनंद सिंह,
बलिया।
सहतवार नगर पंचायत क्षेत्र में वीर कुंवर सिंह मोहल्ले में वीर कुंवर सिंह का जन्म हुआ था। ये बातें सहतवार के लोगों ने बताई। लोगों ने कहा कि वीर कुंवर सिंह का ननिहाल सहतवार में है। जब उनका जन्म हुआ था तो उनकी मां अपने मायके में थी। ये बातें पहले के पूर्वजों द्वारा बताई जाती है।


मंगलवार को जनसंदेश टाईम्स की टीम सहतवार स्थित कुंवर सिंह मोहल्ले में पहुंची जहां लोगों से बातचीत की। लोगों ने बताया कि ये वही जगह है कि जहां वीर कुंवर सिंह अपने नाना और नानी से मिलने आया करते थे। आज उस जगह पर कुछ हिस्सों में स्कूल और कुछ हिस्सो में विवाह घर बन गया है।

आज भी उस जगह पर पुराने ईंट दिखाई दे रहे जो बहुत ही पुराने जमाने के है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वीर कुंवर सिंह के ननिहाल के घर का ये ईंटे है। जो अभी सुरक्षित नहीं है, बिखरे पड़े है।

संबंधित विभाग की निगाह यहां तक नहीं पहुंच पा रही है, अगर प्रशासन इस पर ध्यान नहीं देगा तो वीर कुंवर सिंह के समय का ईंटों का नामोनिशान मिट जाएगा। ऐसे में इसे सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। पहले जमाने का द्वार भी आज देखने को मिल रहा है।

वीर कुंवर सिंह का जन्म अवधि
वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवम्बर 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के एक क्षत्रिय जमीनदार परिवार में हुआ था। इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह व माताजी का नाम पंचरत्न कुंवर था। उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह नामी जागीरदार रहे तथा अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे।

जनश्रुतियों के अनुसार…
जनश्रुतियों के अनुसार पूर्व के जमाने में औरतों को जब भी पहला बच्चा पैदा होता था तो औरतें अपने मायके ही चली जाती थी। संभवतः वीर कुंवर सिंह की मां भी उनके पैदाइश के समय सहतवार स्थित अपने मायके आ गई थी और संभवत: उनके ननिहाल के साथ ही उनका जन्म भी सहतवार में भी माना गया है।

वीर कुंवर सिंह की रक्षा को हुई थी 106 सैनिकों की हत्या
बलिया। यह बात 1857 की है। नायक वीर कुंवर सिंह की रक्षा के लिए सहतवार थाना क्षेत्र के कुशहर ग्राम सभा के मुड़िकटवा मैदान में ग्रामीणों ने 22 अप्रैल को लड़ाई लड़ी और बांस के खप्चर से 107 अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया। वीर कुंवर आरा, दुल्लौर, अतरौलिया, आजमगढ़ व सिवान के रास्ते अंग्रेजों से युद्ध करते हुए रेवती से उत्तर पश्चिम कुशहर के मुड़िकटवा नामक स्थान पर पहुंच गए। यहां आते-आते कुंवर सिंह पूरी तरह थक चुके थे।
उधर अंग्रेज कप्तान डगलस की सेना उनका निरंतर पीछा कर रही थी। अंग्रेज सैनिकों के आने की सूचना पर क्षेत्रवासी उनकी रक्षा के लिए बांस के खप्चर तैयार किए तथा परंपरागत लाठी, भाला व फरसा से लैस होकर त्रिकालपुर के रास्ते मुड़िकटवा मैदान के सामने निकलने वाले पगडंडी में लगे खर पतवार के झुरमुट व अरहर के खेत में घात लगाकर छिप गए। जैसे ही डगलस की सेना मुजवावानी व पगडंडी के रास्ते आगे बढ़ी क्रमश: एक-एक कर 106 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घात उतार कर लोगो ने शौर्य का परिचय देते हुए इतिहास रच दिया।
इस बीच कुंवर सिंह सकुशल गंगा तट पहुंच गए तथा नाव से गंगा उस पार जगदीशपुर के लिए रवाना हो गए। इसी बीच बेली नामक अंग्रेज सैनिक ने कुंवर सिंह को गोली मार दी। गोली उनकी बांह में लगी। गोली का असर पूरे शरीर में न हो इसलिए कुंवर सिंह ने अपनी बांह को काटकर गंगा माता को अर्पित कर दिया। घायल अवस्था में वह जगदीशपुर पहुंच गए लेकिन अत्यधिक रक्तस्त्राव के चलते दूसरे दिन 23 अप्रैल को वीर गति को प्राप्त हो गए।

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